मोती हो कि शीशा, जाम कि दुर
जो टूट गया सो टूट गया
कब अश्कों से जुड़ सकता है
जो टूट गया, सो छूट गया
तुम नाहक टुकड़े चुन चुन कर
दामन में छुपाए बैठे हो
शीशों का मसीहा कोई नहीं
क्या आस लगाए बैठे हो
शायद कि इन्हीं टुकड़ों में कहीं
वो साग़रे-दिल है जिसमें कभी
सद नाज़ से उतरा करती थी
सहबाए-गमें-जानां की परी
फिर दुनिया वालों ने तुम से
ये सागर लेकर फोड़ दिया
जो मय थी बहा दी मिट्टी में
मेहमान का शहपर तोड़ दिया
ये रंगी रेजे हैं शाहिद
उन शोख बिल्लूरी सपनों के
तुम मस्त जवानी में जिन से
खल्वत को सजाया करते थे
नादारी, दफ्तर, भूख और गम
इन सपनों से टकराते रहे
बेरहम था चौमुख पथराओ
ये कांच के ढ़ांचे क्या करते
या शायद इन जर्रों में कहीं
मोती है तुम्हारी इज्जत का
वो जिस से तुम्हारे इज्ज़ पे भी
शमशादक़दों ने नाज़ किया
उस माल की धुन में फिरते थे
ताजिर भी बहुत रहजन भी बहुत
है चोरनगर, यां मुफलिस की
गर जान बची तो आन गई
ये सागर शीशे, लालो- गुहर
सालम हो तो कीमत पाते हैं
यूँ टुकड़े टुकड़े हों तो फकत
चुभते हैं, लहू रुलवाते हैं
तुम नाहक टुकड़े चुन चुन कर
दामन में छुपाए बैठे हो
शीशों का मसीहा कोई नहीं
क्या आस लगाए बैठे हो
यादों के गरेबानों के रफ़ू
पर दिल की गुज़र कब होती है
इक बखिया उधेड़ा, एक सिया
यूँ उम्र बसर कब होती है
इस कारगहे-हस्ती में जहाँ
ये सागर शीशे ढ़लते हैं
हर शै का बदल मिल सकता है
सब दामन पुर हो सकते हैं
जो हाथ बढ़े यावर है यहाँ
जो आंख उठे वो बख़्तावर
यां धन दौलत का अंत नहीं
हों घात में डाकू लाख यहाँ
कब लूट झपट में हस्ती की
दुकानें खाली होती हैं
यां परबत परबत हीरे हैं
या सागर सागर मोती है
कुछ लोग हैं जो इस दौलत पर
पर्दे लटकाया फिरते हैं
हर परबत को हर सागर को
नीलाम चढ़ाते फिरते हैं
कुछ वो भी हैं जो लड़ भिड़ कर
ये पर्दे नोच गिराते हैं
हस्ती के उठाईगीरों की
हर चाल उलझाए जाते हैं
इन दोनों में रन पड़ता है
नित बस्ती बस्ती नगर नगर
हर बसते घर के सीने में
हर चलती राह के माथे पर
ये कालक भरते फिरते हैं
वो जोत जगाते रहते हैं
ये आग लगाते फिरते हैं
वो आग बुझाते रहते हैं
सब सागर शीशे, लालो-गुहर
इस बाज़ी में बिद जाते हैं
उठो, सब ख़ाली हाथों को
इस रन से बुलावे आते हैं
sundar prastuti
तुम नाहक टुकड़े चुन चुन कर
दामन में छुपाए बैठे हो
शीशों का मसीहा कोई नहीं
क्या आस लगाए बैठे हो
अच्छी याद दिलाई…..
आभार…
setting mein jaakar
comments se
कृपया वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें
टिप्पणी करने में दिक्कत आती है.
@Anaधन्यवाद. लेकिन असली धन्यवाद के हकदार तो फ़ैज़ साहब हैं जिन्होने यह रचना की
@ Deepak Baba हमने वर्ड वेरिफिकेशन हटा दिया है. ब्लॉग पे आपका स्वागत है